



महासमुंद।छ.ग.सृजन 15/07/2025 वैसे तो छत्तीसगढ़ वन विभाग के वनमंडलों में जंगलों का लुटीया डूबोने वाले अधिकारी कर्मचारियों की कोई कमी नहीं है। लेकिन महासमुंद वनमंडल में 69 वन कक्षों में कथित एएनआर घोटाले के मामले की जांच पश्चात कार्यवाही में विभागीय निष्क्रियता से वन मुख्यालय में बैठे उच्च अधिकारियों की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है।

महासमुंद वनमंडल में 6:50 करोड रुपए की कथित एएनआर घोटाले ने वन विभाग के प्रशासनिक कार्यों पर गंभीर सवाल खडे कर दिए हैं इस मामले में जांच के नाम पर कुछ आइएफएस अधिकारियों को केवल आर्थिक लेनदेन ठीक करने का माध्यम बनाया गया।

जांच और आरोपों की पृष्ठभूमि
महासमुंद वनमंडल के 69 वन कक्षों में एएनआर (एडवांस्ड नेचुरल रीजेनरेशन) कार्यों के नाम पर बिना काम किए ही 6:50 करोड़ रुपए की राशि निकाल लिए जाने का आरोप लगाया गया है। इस पूरे मामले की प्रारंभिक जांच जून 2024 में मुख्य वन संरक्षक शालिनी रैना द्वारा की गई थी। जिनके जांच रिपोर्ट के आधार पर वन मुख्यालय से एक उच्च स्तरीय जांच टीम भेजी गई थी।
इस जांच दल में आईएफएस अधिकारी अरुण जैन,सतोवीसा समजदार सेवानिवृत्त श्री उइके,के साथ अध्यक्षता मे APCCF श्री कौशलेंद्र कुमार शामिल थे। टीम ने पूरे वन क्षेत्र का निरीक्षण किया और सभी कार्यों के पूरे होने की पुष्टि की
मुख्यालय का दबाव और वसूली की नोटिस जारी करने की कार्यवाही।
हालांकि वन मुख्यालय से कथित दबाव के चलते जांच रिपोर्ट में ये दावा किया गया है की 35% से 40% कार्य पूरा नहीं हुआ है इसके आधार पर संबंधित परिक्षेत्र अधिकारियों को 35 से 40 लाख रुपए और डिप्टीरेंजर व फॉरेस्ट गार्डों को 4 से 6 लाख रुपए के वसूली के नोटीस जारी किए गए।
आइएफएस पंकज सिंह राजपूत के महासमुंद कार्यकाल में वनों का महाविनाश से जुड़ा है मामला।
फर्जी जांच का खुलासा
नोटिस प्राप्तकर्ताओं द्वारा मांगे गए अभिलेखों से यह ज्ञात व स्पष्ट हुआ की कोई वास्तविक जांच रिपोर्ट ही नहीं है बिना किसी पंचनामे व प्राक्कलन विवरण के नोटिस जारी करना मामला पूर्णत: संदिग्ध माना जा रहा है। सामान्यतः खासकर इस तरह के जांच प्रक्रिया में कार्यक्षेत्र का मापन कर लाॅस प्रकरण बनाया जाता है लेकिन यहां पर बिना किसी उचित दस्तावेज के 35 से 40% कार्य नहीं किए जाने का दावा किया गया है।

वनविभाग के इस घोटाले के जांच प्रक्रिया ने प्रशासनिक अनियमितता की चरम सीमा लांघ दिया है अगर ऐसे मामले में जल्द कोई ठोस कार्यवाही नहीं किए जाते हैं तो वन विभाग के बड़े अधिकारी छोटे अधिकारी कर्मचारियों पर इसी तरह मनमाने और फर्जी जांच का दबाव बनाते रहेंगे ऐसे बड़े घोटाले के मामले को जागरूक जनप्रतिनिधीयों व लोगों को उचित मंच पर प्रमुखता से उठाने की जरूरत है।
इस घोटाले व प्रशासनिक अनियमितता की सच्चाई जानने और समझने के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी जांच व दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग जोर पकड़ रही है।
यदि यह मामला व्यक्तिगत लेनदेन के मामले थे तो इसे सुलझाने के लिए ईमानदार आईएफएस अधिकारियों का जांच के नाम पर दूरुपयोग क्यों किया गया।
ये एक सबसे बड़े प्रशासनिक धांधली का बहुत बड़ा मामला नहीं है तो और क्या है?
इस मामले से वन विभाग के जांच के नाम पर दुषित कार्य प्रणाली विश्वसनीयता पर गहरा और अमिट प्रश्न चिन्ह लग गया है अब यह देखने वाली बात है कि सरकार और विभाग इस मामले को किस प्रकार सुलझाते हैं।



